लेमेन्स इवैंजलिकल फैलोशिप इंटरनैशनल

संदेश-उपदेश

 

दासत्व से उत्तराधिकार में

 

      तुम ने दासत्व का आत्मा नहीं पाया है कि फिर भयभीत हो, परन्तु पुत्रों के समान लेपालकपन का आत्मा पाया है, जिस से हम "हे अब्बा! हे पिता!' कह कर पुकारते हैं। (रोमियों 8:15)

दासत्व का आत्मा या लेपालकपन का आत्मा - हम ने कैसा आत्मा पाया है? दासत्व का आत्मा, लोगों को दुबारा बंदी बनाने की कोशिश में है। पौलुस इन लोगों को अपने दासत्व से रिहा कराने के प्रयास में है। किसी कारण, हम किसी न किसी गुलामी में रहना पसंद करते हैं। और कही पर यह गुलामी हमें जकड़ लेती है। भय की गुलामी एक आम बात है। और हमारी कल्पनाएँ हमारे उस भय को कई गुणा कर देती हैं। इसलिए हम ऐसी चीजों की कल्पना करते रहते है जिनका कोई अस्तित्व ही नहीं। यह दासत्व का आत्मा है। लेपालकपन का आत्मा हमें सिंहासन पर अपना ध्यान मग्न करने में सहायता करता है। हमें कहा गया है कि हम मसीह के साथ सह-उत्तराधिकारी हैं। पवित्रात्मा इस बात की गवाही देता है कि हम मसीह के साथ सह-उत्तराधिकारी है। लेपालकपन का आत्मा "हे अब्बा! हे पिता!' कहके पुकारने देता है।

फिर वह उनसे थोड़ा आगे बढ़ा, और भूमि पर गिर कर प्रार्थना करने लगा कि यदि सम्भव हो, तो यह घड़ी टल जाए।  और वह कहने लगा, "हे अब्बा पिता! तेरे लिए सब कुछ संभव है। यह प्याला मुझ से हटा ले। फिर भी मेरी नहीं परन्तु तेरी इच्छा पूरी हो।' (मरकुस 14:35,36) यह गतसमनी के बगीचे में हुआ था। वहाँ यीशु मसीह पुकार उठे "हे अब्बा! पिता!" यह पुकार, एक दृढ़ सम्बन्ध का एक अवर्णनीय अभिव्यंजना की तरह दिखता है। ऐसा जैसे बहुत भरोसे के साथ जो तुम सिर्फ अपने पिताजी को कहते हो। उन पर दृढ़ विश्वास पूर्वक कहते हो,"हे अब्बा! पिता! अब मुझे क्या करना है?' यहाँ यीशु, मनुष्य के अपराधों के प्याले का सामना कर रहे थे। पाप रहित परमेश्वर का पुत्र, स्वयं इस पाप के प्याले का सामना कर रहे है - यह कितना अनोखा लम्हा है। इसलिए यह पुकार, यह आह यीशु के हृदय से निकली थी। जो लोग क्रूस को उठाकर नही चलते उनके हृदयें ऐसी पुकार नही होगी। हम अपने आप को दीन नहीं करना चाहते। अपने पापों को अपना कहके स्वीकारना नही चाहते। हम अपने देश के पाप को अपने ऊपर लेना जरूर नही समझते। रोने लायक अपने देश की हालत देख, हम अपनी आखें मूंद लेते है।

हम अपने निजी काम में इतने व्यस्त रहते है। और हमारे चारों तरफ दुनिया के प्रति हमारे मन में कोई सच्चा बोझ नही। हमारे प्रभु यीशु सेवा में बहुत व्यस्त हो सकते थे। संगठन-संबंधी कार्यों में एक जोखिम समस्या है। वह तुम्हारी मेहनत पर निर्भर रहता है। इसलिए तुम्हें बहुत कष्ट उठाना पड़ता है। और उस में परमेश्वर का कोई योगदान नही होता। यह एक मानवीय पुनरुद्धारण है। इस में "हे अब्बा, पिता' नही होता। इस में क्रूस नही होता। और ही वो लहू के बूंद जो पसीना बने। नही! वह केवल शारीरिक परिश्रम और जोश है। क्या हम वही देख रहे है? क्या वही अंश है जो यीशु हमें सिखा रहे है? आत्माओं को लेकर बोझ और दूसरों के पापों के लेकर बोझ - हम में यही होना चाहिए। अगर वो "हे अब्बा, पिता!' वाली पुकार नष्ट हो जाये तो मैं निश्चित कह सकता हूँ कि वहाँ एक विशाल शून्य है। और उस शून्य को भरने कोई भी चीज सकतीै। तुम्हारे विचार, भय, दुष्ट चीजों के प्रति झुकाव, लालसायें, झूठ और अर्ध-सत्य  बोलने की वह पुरानी आदत तुम्हारे हृदय में पुनः प्रवाहित होगीं।

मगर यीशु अपने बच्चों को कैसा आत्मा देंगे? वे कहते है, "मैं तुम्हें दासत्व से छुड़ा लाया हूँ। इसलिए तुम्हारा वह दासत्व का आत्मा, नष्ट हो गया है। अब तुम में लेपालकपन का आत्मा है। हमारी, हाल ही में शुरू हुई  सहभागिता नही है। 65 साल पहले हमारा प्रारंभ हुआ है। सामान्य परिस्थिति में अब तक हमें उस लेपालकपन के आत्मा में स्थिर हो जाना चाहिए था। क्या हमने उस लेपालकपन के आत्मा में दृढ़ता, स्थिरता, उसी पर आधारित पुष्टिकरण पाया है? हम ईमानदार बने! यह क्या है? किस प्रकार की आत्मा ने हमें जकड़ लिया है। परमेश्वर और इस संसार का आत्मा, इन दोनों के बीच बैर है। वह तुम्हें सोचने पर मजबूर करता है - "मैं जल्दी अमीर कैसे बन पाऊँगा?' वहॉं गतसमनी कहॉं है? क्या यह पुकार हम खो बैठे हैं? हम परमेश्वर के सामने ईमानदार रहें और अर्ध-सत्य बोले।

 सत्य का आत्मा, परमेश्वर का आत्मा है। और लेपालकपन का आत्मा, सत्य के आत्मा की गठरी है। अगर इस सत्य का सामना नही कर पायें तो यह एक भयानक विषय है। सत्य किसी को नही छोड़ता। मगर क्या तुम्हारे लिए सत्य भला है? सत्य जानने के लिए, तुम्हें कुछ परीक्षाओं से गुजरना होगा। और सत्य सबको कड़वा लगता है। मैंने कई देशों में यही प्रचार किया कि अगर फैलोशिप में बार-बार संजीवन नही होता, तो यह फैलोशिप मुरदा बन जायेगी। कम से कम हर पाँच या दस सालों में जागृति होना ज़रूरी है। दस सालों में बच्चे नव युवक बन जाते है। और अगर वे आत्मिक जागृति के बारे में नही जानेंगे, सत्य के अनुसार नही चलेंगे तो, उनके लिए कोई अवसर नही रहेगा। पन्द्रह साल का युवक, व्यवसाय के बाजार में एक नया सदस्य बनेगा। जब वह उस में प्रवेश करेगा तो उसकी जेब में पैसे आयेंगे। मगर परमेश्वर के राज्य को पहला स्थान दे, उसने यह कभी नही सीखा। "अब्बा, पिता' कहके उसने कभी नही पुकारा। वह इस दुनिया के लिए एक धोखे की बात के समान है। संजीवन की आवश्कता को क्या तुम देख पा रहे हो? संजीवन के लिए तुम्हारे हृदय में यह पुकार स्वाभाविक होनी चाहिए। जोर देकर या प्रयास करके तुम यह पुकार नही प्राप्त कर पाओगे।

चार्ल्स फिन्नी एक व्यवसायी के बारे में बात किया करते थे। वे अपने कारोबार से लौटते और तुरन्त प्रार्थना सभा में प्रार्थना का आत्मा में मग्न होते। श्रीमान फिन्नी कहते, "यह कितना व्यस्त आदमी है और उन पर कितनी जिम्मेवारी है। फिर भी वे अपने प्रार्थना के आत्मा को कैसे कायम रख पाते हैं?' सम्भवतः फिन्नी उनके घर में मेहमान बन कर रहे। और इस तरह एक दिन, जब फिन्नी के बच्चे को दूध या कुछ चीज की जरूरत थी तो वे सोने के कक्ष से नीचे उतरे। तब सुबह लगभग तीन बजा था। और उन्होंने देखा कि वह व्यवसायी परमेश्वर के सान्निध्य, प्रार्थना में खोया हुआ था।  उन्होंने कहा, "अब मैं जानता हूँ, किस तरह यह आदमी प्रार्थना के आत्मा में रहता है।' उस आदमी ने कहा, "परमेश्वर के साथ घनिष्ठ संपर्क रखने के लिए, मेरे पास एक ही मार्ग है। मैं मध्य रात्रि में उठकर, परमेश्वर के साथ अपना वक्त गुजारता हूँ।' ऐसा करने में, कितने अनुशासन की जरूरत है, तुम जानते हो।

 तुम समझ सकते हो कि ऐसे लोगों में हे अब्बा, पिता कहने की पुकार रहती है। वे इस संसार में तो है मगर इस संसार के नही है। ऐसा लगता है कि संसार उनमें कभी प्रवेश नही कर पाता। प्रभु यीशु ने यह दो बार कहा, "तुम संसार के नही हो, जैसे मैं संसार का नही हूँ।' उससे मुझे एक जोरदार बढ़ावा मिलता है। हम सिद्धता के बारे में बाते करते रहे है; हवा में बाते करने से कोई फायदा नहीः "अतः तुम सिद्ध बनो, जैसा कि तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है।'

वास्तव में, जब एक महत्व पूर्ण निर्णय लेने की घड़ी या संकट के समय में हम नासमझ बच्चों के समान है। जैसा चाहा, वैसे हम बात करते है। अपने भय को अभिव्यक्त होने देते है। और हम सिर्फ कहते है, "मेरी इच्छानुसार हो।' यह लेपालकपन का आत्मा नही है और ही सत्य का आत्मा। "तेरी इच्छा पूरी हो, मेरी नही।' लेपालकपन का आत्मा तुमको यह पुकारने पर मजबूर करता है। यह बहुत कठिन और थकाऊ हो सकता है। यह तुम को मार भी सकता है। मगर यह लेपालकपन का आत्मा तुमको, परमेश्वर की  इच्छा में एक दृढ़ संस्थापन देता है। और परमेश्वर की  इच्छा के प्रति एक कभी ना झुकने वाली(सुपुर्दगी) वचन बद्धता देता है।

परमेश्वर के पास हमारे लिए एक जमा पूंजी है। वह क्या है? परमेश्वर का उत्तराधिकारी! क्या तुम उसको हासिल करने दौड़ रहे हो? क्या हम में लेपालकपन का आत्मा है? मसीह का आत्मा, परमेश्वर के पुत्र का आत्मा, हम में यह पुकारने भेजा जायेगा, हे अब्बा, पिता। क्या यह पुकार हम में से निकल रही है? जब तुम में यह पुकार हो तो, बाकी सब पुकार और दबाव बाध्यता तुमसे निकाल दिया जायेगा। क्योंकि तुम एक पुत्र हो और तुम्हारा स्थान यीशु के साथ है। तुम्हारी पुकार, यीशु के हृदय से निकलने वाली पुकार होगी। अनेक साल मसीह बनकर जीने के बाद, हमारी परिपक्वता कहाँ है? बहुत प्रकाशन पाने के बाद, हमें परमेश्वर के साथ-साथ, स्वर्ग सीमाओं में चलना चाहिए। परमेश्वर हमारी सहायता करें!

- जोशुआ दानिय्येल