लेमेन्स इवैंजलिकल फैलोशिप इंटरनैशनल

संदेश-उपदेश


विश्वास में बढ़ना
(Building up in faith)



"पर हे प्रियो, तुम अपने अति पवित्र विश्वास में अपनी उन्नति करते हुए और पवित्र आत्मा में प्रार्थना करते हुए।" (यहूदा 20)

आत्मा की प्रार्थना बहुत अच्छी प्रार्थना हो सकती है। परन्तु जब हम परमेश्वर का इंतिजार कर प्रार्थना करते है, हम पाते हैं कि कुछ ऐसी दूसरी शक्ति है जो हमें नीचे खींचती है। हमारा हृदय परमेश्वर से सहमति नही करता। हम कभी-कभी ऐसा पाते हैं कि अभी भी ऐसा पाप हमारे अन्दर है, जो हमने कबूल नहीं किया है। हमें, हमारी भूल-चूक के पाप को भी स्वीकार करना चाहिए। आपके अन्दर महान चीजों को रखने की योग्यता है। याद रखें कि आप परमेश्वर की समानता में बनाया गये हैं। आप परमेश्वर को तब तक पकड़े रहें जब तक वे आपके आत्मा और हृदय को एक नही कर देते। जब वे जुड़ जाते हैं तो आप एक महान शक्ति से अपने आप को जुड़ा पाते हैं। और आपकी प्रार्थना पवित्र आत्मा में की गई प्रार्थना कही जाती है। मन और प्राण एक होने पर पवित्रात्मा हमें अपने आधीन में लेता है। तभी हमारी प्रार्थना नबूवतपूर्ण होती है। और संदेश आप के हृदय को नम्र करता है साथ ही आपके आसपास के लोगों के हृदय में भी अपना काम करता है। नरम लोहे पर चुम्बकीय प्रभाव पड़ता है, पर यह इस चुम्बकीय प्रभाव को अधिक समय तक अपने में नही रख सकता है। आप परमेश्वर से संबंध रख कर कुछ आनन्द प्राप्त कर सकते हैं। पर यदि आप अधिक शक्ति पायेंगे और अधिक समय तक उस शक्ति को अपने में बनाये रखेंगे। यह शक्ति एक पापी को वापस पाप में नहीं गिरने देगी बल्कि उसे विजय को ओर आकर्षित करेगी। मनुष्य का पुत्र खोये हुओं को खोजने आया। "अब तू अपने हृदय और प्राण को अपने परमेश्वर यहोवा का पवित्र स्थान बना, ताकि तू यहोवा की वाचा की संदूक और परमेश्वर के पवित्र पात्र उस भवन में लायें, जो परमेश्वर के नाम का बननेवाला है।" जब हम प्रार्थना के लिये एक झुंड में शामिल होते हैं। परमेश्वर के लिये एक आराधना स्थल बनाते हैं। जब दो या तीन एक स्थान पर जमा होते हैं वहाँ हृदय की प्रार्थना होती है। आप परमेश्वर के आराधना स्थल बनते हैं। परमेश्वर वहाँ निवास करेंगे।


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